// इश्क में जो भी हो वो जाईज़ है
इश्क में ‘रेफ़री’ नहीं होता! //

जब महीना भर कई सारी किताबें पढ़ ली थी उसके बाद खुद के लिए जो किताब उठाई, थोड़ा relax होने के लिए, वह थी “पाजी नज्में”, गुलजा़र साहब की एक अनोखी पेशकश. यह किताब शुरू से अंत तक आपको सिर्फ और सिर्फ surprise करती है और ढेर सारा हंसाती है.

यह नज्में पाजी होंगी लेकिन इनका एक अलग अनुभव था. गुलजा़र साहब के चश्मे से हमें एक अनोखी दुनिया दिखाई देती है. एक टकले के सिर पर भिन्न-भिन्नानेवाली मक्खी हो या प्रोग्राम्ड दिल या हाईटेक इलेक्शन सारी की सारी नज्में अलग-अलग कैनवास पर उतारी गई अलग-अलग painting जैसे दिखाई देती है. इस किताब में सोशल chaos, प्यार का एहसास, और humour साथ-साथ चलते दिखाई देते हैं. मेरे ख्याल से यह नज्में पाजी ना होकर “वाह जी नज्में” कहलानी चाहिए.

इन नज़्मों को फिर से छूना पसंद करूंगी, एक-एक घूंट पीना पसंद करूंगी, लेकिन एक नज़्म जो सीने में अटकी है वो है “इश्क में ‘रेफरी’ नहीं होता.”

बाकी आप जब ये किताब पढ़ेंगे तो आप खुद जान जाएंगे.

To buy the book, pls click – https://amzn.to/3yFWq3e

***Copyright in content and pictures belongs to Siddhi Palande, the owner of this blog, and cannot be republished or repurposed without permission from the author. Infringement of any kind will invite strict legal action.***